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शनिवार, 12 जून 2010
गुटबाजी का शिकार हुए हिंदुस्तान के भदोही ब्यूरो चीफ संजय शुक्ल
हिंदुस्तान हिंदी दैनिक के भदोही ब्यूरो चीफ संजय शुक्ला अंतत: यहाँ पर चल रही गुटबाजी का शिकार हो गए उन्हें इस पद से हटाकर वाराणसी कार्यालय में न्यूज़ डेस्क पर नियुक्त कर दिया गया. ज्ञातव्य हो की हिंदुस्तान अख़बार काफी दिनों से भदोही जनपद में गुटबाजी का शिकार हो रहा है. यहाँ पर एक गुट अख़बार के लिए समर्पित है जबकि दूसरा गुट अख़बार के नाम पर खुद अपने लिए राजनिति करता है. यही वजह है की वाराणसी कार्यालय लाख प्रयासों के बाद जनपद में एक हजार से अधिक का प्रसार कर पाने में सक्षम नहीं रहा है. यही नहीं अख़बार में जारी गुटबाजी का ही परिणाम है की यह समाचार पत्र अभी तक जनपद में चौथे स्थान पर है. ऐसा नहीं है की वाराणसी कार्यालय द्वारा इसके लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया बल्कि भदोही में सुधार के लिए तेज तर्रार प्रभारी भेजे गए. लेकिन जनपद में जारी जंग का ही परिणाम रहा की सभी प्रभारियों को बैरंग वापस होना पड़ा . कुछ माह पूर्व यहाँ पर संजय शुक्ल को प्रभारी बनाकर भेजा गया जो काफी तेज तर्रार भी थे, उन्होंने यहाँ के बारे में रिपोर्ट बनाकर वाराणसी कार्यालय भेजा. उस दौरान संपादक रविशंकर पन्त हुआ करते थे. रिपोर्ट देखने के बाद भी उन्होंने कोई भी कदम उठाने में गुरेज़ दिखाया. करीब दो माह पूर्व जब राजकुमार सिंह यूनिट के संपादक बन कर आये तो हिंदुस्तान समाचार पत्र में पूरे पूर्वांचल में तहसील स्तर पर न्यूज़ सेंटर खोलने की बात चल रही थी लिहाजा संजय शुक्ल ने निजी हित में काम करने वालो की सूची कार्यालय भेज दी, जब पहले से ही काबिज पत्रकारों को अपना पत्ता साफ होता नजर आया तो उन्होंने खुला खेल खेलना शुरू करा दिया इसमें उनका साथ वाराणसी में बैठे एक डेस्क प्रभारी ने दिया जो अक्सर भदोही आते रहते हैं. काफी दिनों तक चली जद्दो जहद के बाद संजय शुक्ला को ही हार का सामना करना पड़ा और उन्हें वापस वाराणसी बुला लिया गया, एक बार फिर यह साबित हो गया की निजी हित में कार्य करने वाला गुट वाराणसी गुट पर हावी है. हालाँकि संजय शुक्ल को हटने के बाद विरोधी गुट ने मिठाइयाँ भी बांटी .चर्चा है की हिंदुस्तान लाख प्रयास कर ले किन्तु उसे गुटबाजी के चलते भदोही में सफलता मिलना कठिन है.
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